कौन है मासूम कितना क्यूँ बता सकते नहीं ।
उफ़! यह कैसी बेबसी है तिलमिला सकते नहीं ।
और कितने इम्तिहाँ बाक़ी हैं देने के लिए,
इम्तिहाँ लेकर हमें तुम आज़मा सकते नहीं ।
बेचकर ईमान जिनको मिल रही हैं शोहरतें,
दाग़ ये दामन से अपने वो मिटा सकते नहीं ।
जानते हैं हम हक़ीक़त तेरी ऐ दौर-ए-सितम,
है ख़ता किसकी मगर हम यह बता सकते नहीं ।
जिस्म से पहले निकालो दिल, जलाओ फिर मुझे,
दिल में बैठे दोस्तों को तुम जला सकते नहीं ।
तीर दिल पर बेवफ़ा ने ख़ुद चलाकर यह कहा,
तुम हमारे हुक्म पर क्या मुस्कुरा सकते नहीं ।
अपनी नज़रों से गिरा है लोग दुनिया में उसे,
पूजते हैं इस तरह सर भी उठा सकते नहीं ।
सारी दुनिया के अँधेरे इक दिये की रोशनी,
मिलके खा सकते नहीं उसको बुझा सकते नहीं ।
भीड़ के दम पर करो ऐसे न सच्चाई का क़त्ल,
झूठ के क़दमों पे सच को तुम झुका सकते नहीं ।
by – असीम आमगांवी, आमगांव
हिंदू स्त्रियांच्या मालमत्ता संदर्भात ; हिंदू कोड बिलाची पार्श्वभूमी भाग 2
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